देश के विभिन्न हिस्सों में बाघ अभयारण्य राष्ट्रीय उद्यान और संरक्षित वन्य क्षेत्रों के कोर एरिया या बिलकुल आंतरिक संवेदनशील क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस मामले की सुनाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि विशेषज्ञों द्वारा भी दी गई राय में भी कोर एरियाज में चिड़ियाघर यानी जू बनाने या फिर टाइगर सफारी शुरू करने जैसी योजना कतई भी उचित नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ऐसी योजनाओं के नाम पर संरक्षित वन्य क्षेत्रों में अभयारण और नेशनल पार्क के अंदर चल रहे कथित और अवैध तौर पर चल रहे निर्माण और हस्तक्षेप रोकने को लेकर दाखिल एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा कहा गया था कि जिम कॉर्बेट, राजाजी सहित उत्तराखंड के अधिसूचित वन्य क्षेत्रों और कई पार्कों में सफारी रेस्ट हाउस, जंगल हाउस और अन्य निर्माण सैंचुरी के कोर एरिया के अंदर कतई नहीं किए जा सकते.

परियोजना वापस लेने की रिपोर्ट पर पीठ ने भी कहा कि वो भी टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क के कोर एरिया में इस परियोजना के पक्ष में कतई नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस परियोजना के तहत वन्य जीवन के प्रति अत्यंत संवेदनशील माने जाने वाले कोर एरिया और इसके आसपास जू, सफारी, होटल, अतिथिगृह आदि बनवाने से बाघ संरक्षण के लिए किए जा रहे उपायों पर नकारात्मक असर पड़ेगा. ये ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी चीजों से जानवरों के नैसर्गिक पर्यावास और जीवन चक्र, प्रजनन पर कोई खराब असर नहीं पड़े. इसके अलावा इको टूरिज्म और वन्यजीव शिक्षा पर भी नकारात्मक असर न पड़े. पहले से ही खतरे में पड़ी इन जानवरों की आबादी और आजादी पर खतरा बढ़ा हुआ है. ये सब करने से इनके लिए और मुश्किल बढ़ेगी. इन निर्माणों के नाम पर पेड़ों की भी अंधाधुंध कटाई की जा रही है.

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं के याचिकाकर्ताओं में से एक वकील गौरव बंसल ने इस मामले में कोर्ट को बताया कि वैसे भी उत्तराखंड के कॉर्बेट पार्क के गुज्जर सोत, पखराऊ ब्लॉक, सोनानदी रेंज, डिविजन में चल रहे कार्य पर फिलहाल कोर्ट ने इसे रोकने को कहा है.

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